विदेश मंत्री श्री स्टीफन स्मिथ एम पी का भाषण
भारत : नई शताब्दी के लिये एक नया संबंध
20 जून, 2008
पर्थ
इस स्वागत के लिये आपका धन्यवाद तथा आज आपके सामने बोलने के लिये मुझे आमंत्रित करने के लिये भी आपका धन्यवाद।
प्रोफेसर एलन रॉबसन, वाइस चाँसलर यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया (UWA), सुजाता सिंह, ऑस्ट्रेलिया में भारतीय उच्च आयुक्त, सुषमा पॉल, पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में भारत के मानद कौंसल, पश्चिम ऑस्ट्रेलिया के उपप्रमुख इरिक रीपर, प्रोफेसर किम बीज़ली, माननीय अतिथिगण एवं भाइयों एवं बहनों।
आज मैं अपने पुराने विश्वविद्यालय में आकर अपने आप को बेहद खुश नसीब मान रहा हूँ। आज मैं तीन रूप में विश्वविद्यालय में आया हूँ और ये रूप हैं- एक पूर्व विद्यार्थी, पर्थ के एक सदस्य तथा ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री का।
मैं विशेष तौर पर आज भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया के संबंधों के बुनियादी महत्व के बारे में बोलने का मौका पाकर भी काफी खुश हूँ।
यह सही जगह है कि मैं यह काम पर्थ तथा UWA में कर रहा हूँ। भारतीय अध्ययन के मामले में UWA का रिकॉर्ड विशिष्ट रहा है। अगर हम देखें तो इस बात का पता चलता है कि 1993 में इसकी स्थापना स्कूल ऑफ एशियन स्टडिज़ से हुई थी। अगर हम और पीछे जायें तथा 70 के दशक पर नज़र डालें तो उस समय स्वर्गीय डॉ. हयू ओवेन ने दक्षिण एशियाई अध्ययन की बात कही थी और भारतीय इतिहास पर ध्यान केन्द्रित किया था। हयू एक ऑस्ट्रेलियाई थे तथा इस क्षेत्र में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हासिल थी।
UWA से कानून में स्नातक करने के बाद युवा आर्टिकल्ड क्लर्क और वकील के रूप में मैंने अपने कला की डिग्री यहां से पार्ट टाइम के रूप में पूरी की। हयू से शिक्षित होना और उनके तहत अध्ययन हासिल करना एक शानदार अवसर था। खासतौर पर भारत की स्वतंत्रता के आसपास की अवधि के बारे में उनके अनुभव को देखते हुए।
बाद में जब हमने लंदन में अध्ययन और कार्य किया उस समय हयू ने मेरे लिये ब्लैक फ्रायर्स रोड में भारत के आधिकारिक पुस्तकालय तक पहुंच की व्यवस्था की। जहां भारत के संबंध में अभिलेखों और जानकारियों का खज़ाना मौजूद था।
पर्थ के एक सदस्य के रूप में मेरे खुद के मतदाताओं का काफी अच्छा संबंध भारत के साथ स्थापित था। ये संबंध क्रिकेट और हॉकी के कारण था।
सबसे पहले WACA के सदस्य क्रिकेट का और दूसरा हॉकी के साथ परंतु पर्थ के सदस्य के रूप में मेरे दोस्त और चाहने वाले ऑस्ट्रेलियाई ओलंपिक हॉकी टीम के कप्तान, जो इस समय भारतीय हॉकी टीम के तकनीकी सलाहकार और विशेषज्ञ कोच हैं, के कारण भी आमतौर पर ये संबंध रहा है।
यह एक ट्रेजिडी है कि भारत बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाया है, ऐसा 80 वर्षो में पहली बार हुआ है। मुझे भरोसा है कि रिक भारतीय हॉकी टीम को लंदन में होने वाले 2012 के ओलंपिक खेलों में जगह दिलाने में मदद कर पायेंगे।
नई शताब्दी में भारत के साथ नये संबंध स्थापित करने की ऑस्ट्रेलिया की आवश्यकता के बारे में मैं कुछ बाते कहना चाहता हूँ।
पिछले साल दिसम्बर के प्रारम्भ में विदेश मंत्री बनने के तुरंत बाद मुझे केनबरा में राजनयिक कॉर्प्स में बोलने का मौका मिला।
विदेश मंत्री के रूप में यह मेरा पहला भाषण था।
मैंने तब कहा था कि,
'' सिर्फ भारत का महत्वपूर्ण विकास ही मुझे हमारे करीब आने को प्रोत्साहित करता है। मैं अपने संबंधों को और गंभीर एवं मजबूत बनाने के लिए भारत सरकार और भारतीयों के साथ काम करने का इच्छुक हूँ।''
और तब से मैंने वह कथन कई बार दुहराया है।
यह एक अंग है क्योंकि मैं पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया से हूँ, कि मैं भारत की गतिशीलता के बारे में जागरूक हूं। यहां, भारतीय सागर के सिरे पर, पश्चिम ऑस्ट्रेलिया वासी कुदरती रूप से पश्चिम की ओर, भारत की ओर देखते हैं और हम इसकी महान आर्थिक संभावनाओं के बारे में उतने ही जागरूक हैं जितने खुद के बारे में।
पश्चिम ऑस्ट्रेलिया किसी भी अन्य राज्य की तुलना में भारत को अधिक निर्यात करता है।
यह भी सराहनीय है कि सिडनी से सियोल, से शंघाई , या से टोकियो की तुलना में पर्थ और चेन्नई एक दूसरे के अधिक निकट हैं।
जबकि कई कमेंटेटर चीन के विकास पर ध्यान दे रहे हैं, भारत के विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
भारत के बढ़ते रणनीतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव का मतलब है कि यह 21 वीं सदी में दुनिया के निर्माण में महतवपूर्ण भूमिका निभाएगा।
जिस प्रकार दुनिया एशियाई/प्रशांत सदी के उभार की संभावनाएं देखती है, ऑस्ट्रेलिया भारत को राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव में इस ऐतिहासिक बदलाव के दिल में भारत को देखता है।
और जो बात ऑस्ट्रेलिया को इस आशावाद का अहसास देती है वह यह है कि हम सिर्फ इस आर्थिक रूपांतरण के गवाह बनने के बजाए बहुत कुछ कर सकते है।
हम पहले ही इस प्रक्रिया का अंग बन गए हैं। हमार भविष्य भारत और हमारे अन्य एशियाई पड़ौसियों से संबंधित है। हमारी आर्थिक वृद्धि उनकी वृद्धि से ताकत प्राप्त करती है।
निवेश और व्यापार परिदृश्य
ऑस्ट्रेलिया और भारत उल्लेखनीय रूप से व्यापार के क्षेत्र में जुड़ रहे हैं ।
पिछले साल, भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़कर 1 ट्रिलियन अमरीकी डालर से अधिक हो गई। पिछले कई सालों से , यह सालाना 8-9 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। कुछ अर्थशास्त्री भविष्यवाणी करते हैं कि 2025 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
ऑस्ट्रेलिया को इस विकास से बहुत फायदा हुआ है, और मैं अपने दोनों देशों के उद्योग को सलाम करता हूँ जो द्विपक्षीय वाणिज्यिक रिशतों को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत के साथ व्यापार पिछले पांच सालों में अन्य चोटी के बाज़ारों की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ा है।
2004 में, भारत ब्रिटेन को पछाड़ते हुए मर्केंडाइज़ निर्यात का हमारा छठा सबसे बड़ा बाज़ार बन गया।
भारत हमारा 10 वां सबसे बड़ा व्यापार साझीदार बन गया है।
2007 में , माल का दुतरफा व्यापार करीब 11 बिलियन डालर का था।
पिछले पांच सालों से, भारत में ऑस्ट्रेलियाई माल और सेवाओं का निर्यात सालाना औसतन 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है।
हमारा व्यापार खनिज संसाधनों में भी दिखाई दे रहा है। सोना, कोयला, कॉपर और हीरे जैसे उत्पाद हमारे निर्यात में काफी समय से प्रभावी बने हुए हैं।
परंतु धीरे-धीरे और स्थिर रूप से , सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, शिक्षा, पर्यटन, वित्त और निर्माण जैसी सेवाएं अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही हैं।
भारत अब ऑस्ट्रेलियाई सेवाओं के लिए सातवां सबसे बड़ा बाजार है।
भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई निवेशक भी हमारे संबधित बाज़ारों में बड़े अवसर बन रहे हैं।
भारत में ऑस्ट्रेलियाई निवेश 2006 में 2 बिलियन डालर से अधिक था, जिसमें निर्माण, दूरसंचार और खनिज प्रसंस्करण शामिल है।
भारतीय कंपनियां सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि व्यवसाय और संसाधनों में हमारे कौशल निर्माण के लिए अब ऑस्ट्रेलिया में निवेश कर रही हैं।
एक महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक गुजरात NRE, पिछले साल ऑस्ट्रेलियाई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुआ, और टाटा कन्सल्टेंसी, सत्यम और इनफोसिस जैसी भारत की अग्रणी साफ्टवेयर फर्मो की ऑस्ट्रेलिया में मौजूदगी बढ़ रही है।.
महत्वपूर्ण रूप से , सेवा क्षेत्र में , भारत कुछ ऐसे क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करता है जिनमें ऑस्ट्रेलिया अच्छी मदद कर सकता है।
ऑस्ट्रेलिया भारतीय किसानों को अपना माल तेजी से बाज़ार ले जाने में मदद के लिए कृषि लोजिस्टिक्स में विशेषज्ञता उपलब्ध कराता है। हम ढांचागत फाइनेंसिंग और प्रावधान में विशेषज्ञता के साथ वित्तीय और कानूनी सेवाएं उपलब्ध करा सकते हैं। हम खाद्य उत्पादों और एक्सट्रैक्टिव तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर भी मिलकर काम कर सकते हैं।
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया और भारत ने परस्पर मुक्त व्यापार समझौते के बारे में संयुक्त व्यवहार्यता का अध्ययन कराने का निर्णय लिया था।
मेरे कुलीग साईमन क्रीन और भारत के वाणिज्य मंत्री कमल नाथ पिछले महीने सहमत हुए कि हमारे अधिकारी इस साल के आखिर तक एफटीए अध्ययन पूरा कर लेंगे।
हम अब भारत के साथ अपने रिश्तों को नए आर्थिक और रणनीतिक स्तर तक ले जाने के ऐतिहासिक अवसर को देखने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं।
यह प्रगति इसके बावजूद हुई है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने पिछले तीस सालों में कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किए।
उस दौरान, बिजनेस समुदाय ने निश्चित रूप से अपने व्यावसायिक हितों की तरफदारी की। हमारे वाणिज्यिक रिश्ते बढ़ने से सरकार से सरकार संपर्क बढ़ा। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया सहित कई राज्य ,अभी हाल ही में बहुत सक्रिय हुए हैं, केनबरा में सरकार स्पष्ट रूप से लंबे समय तक भारत के साथ हमारे संबंधों को हिकारत से देखती रही और अनदेखी करती रही।
यह जारी नहीं रह सकता।
हमारे देशों में बहुत कुछ एक जैसा है। हमारे संपूर्ण और स्थिर ध्यान के लिए जरूरी हमारे संबंधों के लिए हमारी अर्थव्यवस्थाओं में बहुत कुछ अनेपूरक है।
सत्ता संभालते ही , ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारत के साथ हमारे आधिकारिक संबंध बढ़ाने की इच्छा ज़ाहिर की।
इस साल अब तक, हम उच्च स्तर के भारतीय दर्शकों का स्वागत करने के मामले में पर्याप्त भाग्यशाली रहे हैं।
मैं खुद प्रधानमंत्री के विशेष दूत श्याम सरण से जनवरी में मिला जब हम दोनों (WACA) के सत्र में मिले थे। मैंने फरवरी में विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व), नीलकंटन रवि से मुलाकात की और पूर्व भारतीय विदेश सचिव एवं अमरीका में पूर्व राजदूत ललित मानसिंह से भी मिला।
रोम में हालिया खाद्य सुरक्षा सम्मेलन के दौरान मैं भारत के कृषि मंत्री (और भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष) शरद पवार से मिला।
इस साल भारत के अनेक मंत्रियों ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया। इनमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल, युवा मामले एवं खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर, सिविल ऐविएशन मंत्री प्रफुल्ल पटेल, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कमल नाथ, इस्पात राज्यमंत्री जितिन प्रसाद तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री सुबोध कांत सहाय शामिल थे।
जल्दी ही मैं ऑस्ट्रेलिया-भारत विदेश मंत्रियों की ढांचागत वार्ता के तहत समान रूचि, समान चुनौतियों के विषय पर भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के दौरे की मेज़बानी करने वाला हूँ।
साझा हित , साझा चुनौतियां
हम दो देशों के बीच संबंध एक व्यापक आर्थिक पूरकता से अधिक है। हमारे बीच भाषा एवं संसदीय प्रजातंत्र तथा कानून के नियमों का सम्मान, अनुबंध के नियम तथा बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में समझौते से अधिक बाते हैं।
हमारे गहरे मूल्य एवं रुचियां एक समान हैं।
क्षेत्रीय एवं वैश्विक दोनों ही स्तरों पर भारत और ऑस्ट्रेलिया जितनी सहभागिता करते हैं उससे अधिक की आवश्यकता है।
आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय प्रजातंत्र है, जो इसकी आर्थिक ताकत एवं आकार, रणनीतिक शक्ति एवं इतिहास के आधार पर वैश्विक प्रभाव के कारण इसे यह योग्यता प्रदान करता है।
भारत की बात को इस समय क्षेत्रीय एवं अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर सुना जाता है।
ऑस्ट्रेलिया एक ऐसे देश के रूप में दिखाई देता है जहां घरेलू विकास की उल्लेखनीय गति के साथ-साथ क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में सक्रिय एवं सकारात्मक भूमिका का शानदार समन्वय है।
हम दोनों ASEAN क्षेत्रीय फोरम तथा पूर्वी एशिया सम्मेलन के सदस्य हैं तथा एक-दूसरे का कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया महत्वपूर्ण दक्षिण-एशियाई क्षेत्रीय निकाय, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क), जिसमें हमने निरीक्षक की स्थिति मांगी है, की बैठकों में भी भाग लेने की सोच रहा है।
भारत अब तक APEC का सदस्य नहीं है यद्यपि ऑस्ट्रेलिया का मजबूती से ये मानना है कि 2010 में सदस्यता स्थगन काल समाप्त होने से पहले भारत को इसका सदस्य बन जाना चाहिए।
एशिया में भारत की राजनयिक भूमिका बढ़ती जा रही है, जो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा 1990 के प्रारंभ में शुरू की गई, सोच एवं दक्षता वाली ‘Look East’ नीति में दिखाई देता है। यह नीति भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्षेत्रीय सहयोग की अधिक गुंजाइश प्रदान करती है।
जैसा कि वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि - ‘Look East’
''न केवल एक विदेशी आर्थिक नीति है बल्कि यह विश्व के बारे में भारत के विचार में रणनीतिक बदलाव भी है तथा विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की जगह भी बनाता है।'' (Speech at Asian Corporate Conference, ‘Driving Global Business : India’s New Priorities, Asia’s New Realities’, Mumbai, 18 March 2006).
चूंकि भारत पूर्व की ओर देख रहा है तो निश्चित ही ऑस्ट्रेलिया को पश्चिम की ओर देखना चाहिए।.
इस दिशा में हमारे प्रधानमंत्री के नई एशिया- पैसेफिक समुदाय के बारे में विचार के मसले पर भारतीय विदेशमंत्री मुखर्जी के साथ चर्चा कर मैं आगे बढ़ना चाहूंगा। हमारे प्रधानमंत्री का विचार दुनिया में तेज़ी से विकासशील हमारे क्षेत्र को अधिक रणनीतिक स्थिरता को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करेगा।
जैसा कि विदेश मंत्री मुखर्जी ने बीजिंग में कहा कि
“एक खुली तथा सम्मिलित संरचना वही है जो इतनी लचीली हो जो एशिया में मौजूद व्यापक विविधता का समायोजन कर ले.. हमें निश्चित ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसमे क्षेत्रीय एकीकरण प्रक्रिया सम्मिलित हो ताकि वह एशियाई आर्थिक समुदाय को बांधने की दिशा में कार्य कर सके और जो खुली, पारदर्शी तथा सम्मिलित हो तथा जो हमेशा के लिए व्यापक आर्थिक अवसर प्रदान करने के लिए एक मंच उपलब्ध करा सके। ”. (आज भारत की विदेश नीति'' बीजिंग के पीकिंग विश्व विद्यालय में ६ जून २००८ को दिया गया भाषण)
हमारा सहयोग केवल क्षेत्रीय नहीं है, यह बहुस्तरीय है।
1947 में जब भारत ने स्वतंत्रता हासिल की उसके बाद ऑस्ट्रेलिया और भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इंडोनेशिया और नीदरलैंड के बीच विवाद को मिटाने के लिये मिलकर काम किया।
इस सहयोग के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने इंडोनेशिया में एक सम्मेलन में भाग लेने के लिये ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित किया।
इस शुरूआत के बाद से ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत भी संयुक्त राष्ट्र की शांति गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
हाल के समय में हमने पूर्वी तिमोर, जहां भारत ने पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति की है, हमने मिलकर काम किया है। हमने सूडान में संयुक्त राष्ट्र के हालिया शान्ति प्रयासों का समर्थन किया है।
एशिया को भविष्य के लिये गंभीर एवं सकारात्मक शक्ति बनाने की दिशा में भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
ऑस्ट्रेलिया का मज़बूती के साथ यह मानना है कि भारत की बहुस्तरीय कटिबंद्धता को देखते हुए पुनर्गठित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इसे स्थाई जगह मिलनी चाहिए। उस विश्व निकाय को निश्चित ही सही तरीके से आधुनिक विश्व की तरह दिखना चाहिए।
मैं भारत के साथ हमारी रूचियों और मूल्यों की भागीदारी को ध्यान में रखकर बोल रहा हूँ।
इन मूल्यों का छिपा लक्ष्य मिला जुला है जैसे कि आतंकवाद एवं अलगाववाद को लेकर हमारी प्रतिबद्धता।
पर्यावरण में परिवर्तन के चलते उत्पन्न हो रही विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिए वैश्विक चर्चा में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
भारत के साथ मिलकर काम करने के लिये ऑस्ट्रेलिया के लिये अनुकूल स्थिति है क्योंकि इसके साथ इसकी ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा से संबंधित दो महत्वपूर्ण रणनीतिक चिंताएं जुड़ी हुई हैं।
समुद्री सुरक्षा तथा आतंकवाद से निपटने के मामले पर ध्यान केन्द्रित करते हुए हमारी रूचियां स्थिर एवं संपन्न क्षेत्र की दिशा में भी मिलती हैं।
हाल के वर्षो में हमारे सुरक्षा बलों ने संयुक्त युद्धाभ्यास में भाग लेना शुरू किया है विशेषकर समुद्री युद्धाभ्यासों में।
सैन्य समझौता अब जहाज़ों की विज़िट्स, प्रोफेशनलस के आदान-प्रदान और शोध एवं विकास में सहयोग सहित व्यापक गतिविधियों में बढ़ रहा है।
यह कानून प्रवर्तन, वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में जितना किया जा सकता है और जितना किया जायेगा उससे कहीं अधिक है।
मैंने इन विचारों पर आगे काम करने और श्री मुखर्जी के साथ व्यावहारिक पहल के बारे में वार्ता की योजना बनायी ।
ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण की महत्वपूर्ण चुनौती से निपटने को प्रतिबद्ध हैं, जिसके लिए हमारे दोनों प्रधानमंत्रियों ने हाल के दिनों में सार्वजनिक रूप से वक्तव्य दिए हैं।
भारत परमाणु निरस्त्रीकरण के हमारे परम उद्देश्य में भागीदार है तथा परमाणु अप्रसार का उसका ठोस रिकार्ड रहा है।
परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण के अंतर्राष्ट्रीय आयोग में भारत की भागीदारी से इस लक्ष्य को पाने में बहुत मदद मिलेगी।
ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ व्यापक संबंध विकसित कर रहा है, ऐसे संबंध जो विशिष्ट मुद्दों पर मतभेद दूर कर सकते हैं और करते हैं तथा ऐसे जिनमें सकारात्मक और संगठित रूप से आगे बढ़ने की गुंजाइश है।
जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किए हैं उनको यूरेनियम न बेचने की ऑस्ट्रेलिया सरकार की नीति दीर्घकालीन और जानी पहचानी है।
ध्यान देने की महत्वपूर्ण बात हालांकि यह है कि भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते इस एक मुद्दे से बहुत व्यापक हैं।
छुपे बदलाव, शांतिपूर्वक सफलता
व्यापार और निवेश में वृद्धि के समानांतर मैंने इसका वर्णन किया है कि हम देख सकते हैं कि शांतिपूर्वक मगर शक्तिशाली रूप विकसित हो रहा है।
भारत के साथ हमारे संबंध की महक people-to-people संपर्क और शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और खेल के क्षेत्रों में आदान-प्रदान से दिनों दिन फल फूल रही हैं।
इससे हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को बहुत फायदा हो रहा है।
2006 की जनगणना के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय ऑस्ट्रेलिया का नौंवा सबसे बड़ा वर्ग था। इनकी संख्या 230000 से अधिक है। इनकी संख्या रोज़ाना बढ़ती जा रही है क्योंकि इस देश के लिए यह सबसे बड़ा प्रवासी कौशल का स्रोत है।
मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हमारा देश अब भी किसी को सफल होने के अवसर उपलब्ध कराता है और भारतीय निश्चित रूप से यह इरादा रखते हैं।
एक उदाहरण देखिए, लीज़ा स्थालेकर, पुणे में पैदा हुई और अब ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेट टीम की उप कप्तान तथा न्यू साउथ वेल्स की कप्तान है। लगातार दूसरे वर्ष, लीज़ा को फरवरी 2008 में महिला अंतर्राष्ट्रीय प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया।
ये नागरिक और स्थायी निवासी भारतीय छात्रों की धारा से जुड़ रहे हैं। भारतीय छात्रों के लिए, ऑस्ट्रेलिया दुनिया की दूसरी सबसे पसंदीदा जगह है।
सिर्फ पिछले साल ही 50,000 से अधिक नामांकन हुए।
कुछ तरीकों से, यह देखना आसान है कि ये कैसे हो सकता है। हम दोनों अंग्रेज़ी बोलते हैं और क्रिकेट के बारे में बात करते हैं। हमारे विश्वविद्यालय भारत के महत्वाकांक्षी युवकों की पसंद के स्तर के हैं तथा उनके पाठ्यक्रम भी भारतीयों के अनुकूल हैं।
हमारे विश्वविद्यालयों के किरण मजूमदार शॉ जैसे स्नातक भारत के जाने पहचाने और सफल बिजनेसमैन हैं जिन्होंने Ballarat में पढ़ाई की। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच समझौतों के नेटवर्क को मज़बूत बनाने के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया है।
यह बहुत ध्यान देने योग्य है कि भारत में जन्मे प्रवासी ऑस्ट्रेलिया में बेहद उच्च शिक्षित वर्गों में से एक हैं। स्नातकोत्तरों की संख्या बहुत बड़ी है तथा अनेक पेशेवर और तकनीकी कंपनियों में कार्यरत हैं।
शिक्षा एक-दूसरे की संस्कृति के बारे में सीखने के लिए विशिष्ट अवसर उपलब्ध कराती है। इस प्रकार का सामाजिक संपर्क बेहद प्रभाव डालता है।
हम भारत और ऑस्ट्रेलिया के शैक्षिक संस्थानों के बीच संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए पूरे प्रयास करना जारी रखेंगे।
Australia-India Strategic Research Fund 2006 में स्थापित हुआ। यह उच्च क्वालिटी की संयुक्त परियोजनाओं को 5 वर्षों में 20 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से अधिक उपलब्ध कराएगी।
यह ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी द्विपक्षीय विज्ञान एवं शोध निधि है।
इस निधि में भारत के ठोस हित हैं क्योंकि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग का भारत बहुत इच्छुक है। ऑस्ट्रेलिया और भारत ने इस वर्ष मई में बौद्धिक संपदा के बारे में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए।
दोनों देशों के बीच सामाजिक नेटवर्क, व्यावसायिक विकास और अन्य संबंधों के लिए असीम संभावनाएं उपलब्ध कराता है।
भारत से प्रवासी इस देश की अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के लिए कौशल की कमी की पूर्ति कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया भारतीयों की पसन्दीदा जगह बन गया है इसलिए भारतीय हमारी संस्कृति के बारे में जागरूक होते जा रहे हैं।
भारत अब ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे तेज़ी से बढ़ता पर्यटन बाज़ार है। भारतीय पर्यटकों की संख्या अगले दशक में औसतन 18 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ने का अनुमान है। वर्ष 2004 में दोनों देशों के बीच सीधी विमान सेवा शुरू होने से इसे मदद मिली है।.
चक दे जैसी अनेक भारतीय फिल्में ऑस्ट्रेलिया में फिल्मायी जा रही हैं या उनका पोस्ट-प्रोडक्शन कार्य यहाँ किया जा रहा है।
हमारे अपने ब्रेट ली ने पिछले साल भारत की मशहूर गायिका आशा के साथ परफोर्म किया।
इन प्रयासों से, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संबंध मज़बूत होते हैं। भारत सरकार हमारी सक्रिय भागीदार है।
भारत अब अपनी ज़बरदस्त श्रम क्षमता को बड़ी गंभीरता से लेता है जो अब बढ़कर 20 मिलियन से अधिक हो गयी है।
निष्कर्ष
आज मैंने इस बारे में कहा कि ऑस्ट्रेलिया क्यों भारत के साथ संबंधों को बुनियादी महत्व देता है और क्यों हम इसे नई ऊंचाई तक पहुंचाना चाहते हैं।
भारत आर्थिक एवं रणनीतिक ताकत के रूप में उभर रहा है।
यह हमारे क्षेत्र में ऐसा देश है जिसमें हम बहुत कुछ अपने जैसा देखते हैं और जिसके साथ हमारे मूल्य और हित जुड़े हैं।
ऑस्ट्रेलियाई उद्योग अपने भविष्य के लिए भारत के महत्व को समझते हैं।
इस जैसे विश्वविद्यालय, जहाँ अनेक भारतीय छात्र हैं, भी अपना भविष्य समझते हैं।
ऑस्ट्रेलिया सरकार पूरी तरह समझती है कि हमारे भविष्य का केन्द्र भारत कैसे है।
अब भारत का समय आ गया है इसलिए यह भारत के साथ हमारे संबंधों और ऑस्ट्रेलिया के लिए प्रमुख विदेश नीति की प्राथमिकता का भी समय है।
हम भारत के साथ दीर्घकालिक रिश्ते- नई सदी के लिए नए रिश्ते बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं
और इस महान पहल में हम भारत में भागीदारी के इच्छुक हैं।
धन्यवाद