हिन्दुस्तान टाइम्स के विदेश संपादक श्री अमित बरुआ के साथ उच्चायुक्त, श्री जॉन मैकार्थी का इंटरवीयू -10 अप्रैल 2008
श्री अमित बरुआ – मेरा पहला प्रश्न है- आपके प्रधान मंत्री भारत कैसे नहीं आए-वे यू.एस., यूरोप और चीन जा रहे हैं?
उच्चायुक्तः जी, उन्हें बेहद उम्मीद है, कि वे जितनी जल्दी हो सकता है भारत आएंगे तथा हम जल्दी ही लक्ष्य बना रहे हैं। हम भारत सरकार के साथ तारीख के बारे में चर्चा कर रहे हैं और एक महीने से किसी ऐसी तारीख पर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो दोनों सरकारों के अनुकूल हो। अगर यह दोनों सरकारों के लिए सुविधाजनक हुआ, तो वे भारत आने के अधिक इच्छुक होंगे। अगर हम उसकी व्यवस्था कर सके। इसलिए, जब से वह सत्ता में आए हैं यह उनके कार्यक्रम में सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। जब मैं पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया में था तो उन्होंने इस बारे में मुझसे चर्चा की थी तथा वे भारत आना चाहेंगे। इस बारे में तो कोई सवाल ही नहीं उठता। यह वस्तुतः परस्पर स्वीकार्य तारीख का सवाल है।
श्री बरुआ: तो, उच्चायुक्त जी, Nuclear Suppliers’ Group में भारत के मामले में ऑस्ट्रेलिया की क्या स्थिति है?
उच्चायुक्त: यह उचित सवाल है। इसका जवाब भी साधारण है। हमें अभी इस मामले में अपना स्थान निश्चित करना है, क्योंकि हमें IAEA के साथ अनुबंध के ड्राफ्ट सहित सभी रेलेवेंट डाटा अभी मिलना है। हम परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह के सदस्य हैं। हम कह चुके हैं कि हम पूरे मामले को पूरी तरह खुले दिमाग से देखना चाहते हैं। मैंने ऐसा कोई सुझाव नहीं सुना कि हम अमेरिका- भारत समझौते के लिए किसी तरह की अड़चन के इच्छुक हैं। परन्तु हमें हर मुद्दे को उसके महत्व के आधार पर देखना होगा। इस सरकार के लिए निरस्त्रीकरण का मुद्दा बड़ा गंभीर मामला है।
श्री बरूआ: तो, आपको सभी मुद्दे देखने हैं।
उच्चायुक्त: हमें कोई निर्णय लेने से पहले सभी रेलवेंट मुद्दों को देखना है। परन्तु इस मुद्दे पर खुले दिमाग से विचार करेंगे।
श्री बरुआ: क्या आज यह कह रहे हैं कि अनिवार्य रूप से आपको अभी इस पर विचार करना है।
उच्चायुक्त: अभी मंत्रियों की बैठक होनी है और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में पॉज़ीशन लेने पर विचार करना है जो वे रेलेवेंट डाटा उपलब्ध होने पर करेंगे। फिलहाल आप देखिए, हम अभी नहीं जानते कि क्या भारत परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह को रेलेवेंट दस्तावेज़ उपलब्ध कराएगा..... यह अब भी भारत में घरेलू राजनीतिक बहस का मामला है।
श्री बरुआ: मैं सोचता हूँ कि अमरीका ...
उच्चायुक्त: परंतु उन्होंने कहा कि उन्हें भारत सरकार, IAEA के साथ समझौता करना है, और यह उस चर्चा पर निर्भर करता है जो फिलहाल भारत में आंतरिक स्तर पर चल रही है।
श्री बरुआ- भारत में आन्तरिक चर्चा पर क्या सोचते हैं? क्या यह आगे बढ़ेगी?
उच्चायुक्त: मुझे यह कहना है, सभी विचारों को सुनकर.. हम फिलहाल भारत में बहुत मिले-जुले विचार सुन रहे हैं। आप यह आशावाद सुन रहे हैं कि यह आगे बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, अभी कल ही, श्याम सरण ने उम्मीद ज़ाहिर की थी। परन्तु आप भी बहुत सी राय सुन रहे हैं जो वर्तमान समय सीमा को देखते हुए मुख्य रूप से निराशावादी हैं। परंतु, हम देखेंगे, इस स्थिति में, हम आगे बढ़ने के पक्ष में हैं जो यूनाइटेड स्टेट्स, भारत संबंधों के लिए सकारात्मक है।
श्री बरुआ: समय सीमा के बारे में आपको क्या कहना है? क्या आपका कोई दृष्टिकोण है?
उच्चायुक्त: समय सीमा के मामले में, ऐसे लोग हैं जो इस मामले में मुझसे कहीं अधिक विशेषज्ञ हैं। भारत, अमरीका और विएना में ऐसे लोग हैं जो समय सीमा के बारे में बेहद सटीक जानते हैं। परन्तु बिलकुल स्पष्ट रूप से, अमेरिका में चुनावी माहौल है और कांगे्रस भी इस वर्ष के आखिर में होने वाले चुनावों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है, अमेरिका के पास बहुत समय नहीं है।
मैं अमेरिका के सेनेटरों के समूह की टिप्पणियों से अधिक निर्देशित हूं जो हाल ही में यहां थे। आखिरकार, वे इसके कहीं अधिक निकट हैं। वे यहां कुछ हफ्ते पहले थे और उन्होंने कहा कि जुलाई वह समय था जब तक उन्हें इसके होने की ज़रूरत थी.... जुलाई भी बीतने जा रही है, अमेरिका में कांग्रेस को समझौता करना मुश्किल होगा, परंतु मैं नहीं सोचता कि उस बारे में हमारे पास कोई अलग निर्णय है।
श्री बरुआ: भारत को यूरेनियम बेचने के बारे में ऑस्ट्रेलिया की नई सरकार की क्या स्थिति है?
उच्चायुक्त: निश्चित रूप से कुछ भ्रम की स्थिति रही है, मैं सोचता हूं, कि आब्जर्वरस के मुद्दे पर, Nuclear Suppliers’ Group में हम क्या सोच रखते हैं यह अलग मुद्दा है।
श्री बरुआ: क्या यह एनएसजी मुद्दे से अलग है?
उच्चायुक्त: यह इस भावना में एनएसजी मुद्दे से अलग है, यह लंबे समय ऑस्ट्रेलिया की नीति रही है कि हम उन देशों को यूरेनियम की आपूर्ति नहीं करते हैं जिन्होंने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। पूर्व गठबंधन सरकार के तहत, वह नीति बदल दी गयी। वह आंशिक रूप से क्योंकि पूर्व गठबंधन सरकार के तहत यह मुद्दा राजनीतिक रूप से इतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना यह लेबर पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। और गठबंधन सरकार में अपनाई गयी प्रणाली के तहत वह निर्णय मंत्रियों का छोटा सा समूह वह निर्णय ले सकता था।
लेबर पार्टी की इसमें लंबे समय से बेहद गंभीर दिलचस्पी रही है तथा आमतौर पर निरस्त्रीकरण पर नीतियों में, खनन और ऑस्ट्रेलियाई यूरेनियम का निर्यात भी शामिल है। वे ऑस्ट्रेलिया में भी परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के खिलाफ हैं। अब, इस बारे में लंबा इतिहास है। यह उन तथ्यों तक जाता है जब ब्रिटेन ने पचास के दशक में ऑस्ट्रेलिया में परमाणु परीक्षण किया था और हाल ही में फ्रांस ने प्रशांत क्षेत्र में परमाणु परीक्षण किया था। चाहे जो भी कारण हों, दृष्टिकोण बहुत मज़बूत है।
अब, लेबर पार्टी की कान्फ्रेंस ने दीर्घकालिक नीति को फिर दोहराया है कि यूरेनियम की आपूर्ति ऐसे देशों को नहीं की जानी चाहिए जिन्होंने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। यह लेबर पार्टी के चुनाव प्लेटफार्म में था। अब, इसका मतलब है कि किसी भी तरह के पुनर्विचार (अश्राव्य) के लिए पार्टी को समझने के लिए विस्तृत प्रक्रिया से गुज़रना होगा तथा संभवतः पार्टी की कान्फ्रेंस तक जाना होगा..... ऑस्ट्रेलिया सरकार, इस सरकार के लिए यह बेहद जटिल मुद्दा है।
श्री बरुआ: यह पार्टी की कान्फ्रेंस कब हुई थी?
उच्चायुक्त: पार्टी की पिछली कान्फ्रेंस पिछले साल हुई थी।
श्री बरुआ: पहले मैंने केविन रड्ड की टिप्पणी देखी थी, उन्होंने कहा, मैं ऐसे किसी समझौते [यूरेनियम आपूर्ति के लिए] को फाड़ दूंगा या उस जेसे ... वे यह कहते हुए उद्घृत किए गए थे....
उच्चायुक्त: वह 2007 के चुनाव से पहले की बात है।
श्री बरुआ: अगस्त 2007 । क्या आप सोचते हैं कि बदलाव की कोई संभावना है? यह कैसे होगा?
उच्चायुक्त: जी, मैंने सीखा है कि आप राजनीति में कभी भी न नहीं कहते। परंतु मैं यह कहना चाहूँगा कि इस परिस्थिति में, NPT पर हस्ताक्षर न करने वालों को यूरेनियम के निर्यात के मुद्दे पर पार्टी के भीतर स्पष्ट रूप से सुदृढ़ दृष्टिकोण है।
श्री बरुआ: क्या जो आप कह रहे हैं वह यह कि आपके दिमाग में और NSG मुद्दे पर आपकी एप्रोच में यूरेनियम की आपूर्ति पूरी तरह अलग है, क्या भविष्य में ऐसा संभव है। क्या आप यह कह रहे हैं। जहां तक NSG मुद्दे पर आप कह रहे हैं, मूलतः नई सरकार इस पर खुले दिमाग से विचार कर रही है।
उच्चायुक्त: यह ठीक है।
श्री बरुआ: और उसने कोई निर्णय नहीं लिया है इसे समर्थन देने या नहीं देने के बारे में।
उच्चायुक्त: यह ठीक है। मैं यह भी कहना चाहूँगा, कि बहुत से देशों ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है, यहां भी घरेलू चर्चा के परिणाम लंबित हैं और भले ही उन घरेलू चर्चाओं से जो कुछ भी निकले तथा दरअसल भारत और IAEA के बीच चर्चा से।
श्री बरुआ: क्या आप बता सकते हैं कि कितने....
उच्चायुक्त: मेरा अंदाज़ा है कि .. साल के मध्य तक सार्वजनिक रूप से वे अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। मैं नहीं सोचता कि दस्तावेज़ देखने से पहले कोई पूरी तरह स्पष्ट निर्णय लेगा...
श्री बरुआ: भारत के लिए अवसर बंद करने के यहां कोई प्रयास नहीं हैं या...
उच्चायुक्त: नहीं। जैसा कि मैंने कहा ऑस्ट्रेलिया सरकार की ओर से ऐसा कोई मनोभाव नहीं मिला है... (वह करने का)
श्री बरुआ: नई सरकार की ओर से इस चार पक्षीय वार्ता पर कोई टिप्पणी या कोई विरोध जो आप सोचते हों?
उच्चायुक्त: सत्ता में आने से पहले, लेबर पार्टी ने एक स्टैंड लिया था कि, जैसा इसे तब कहा गया, चार पक्षीय रणनीतिक प्रयास (जैसा कि तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री Abe ने कहा था) ज़रूरी था। यूनाइटेड स्टेट्स और उसके दो सहयोगियों जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय सुरक्षा पहल मौजूद है। दूसरा मॉडल बनाने के वास्ते जिसमें भारत को शामिल किया गया। क्षेत्रीय ज़रूरतों के लिए संभवतः ऐसा स्टैंड लेना ज़रूरी था। हम बताना चाहेंगे कि प्रधानमंत्री बदलने के साथ ही जापान का उत्साह संभवतः कुछ कम हो गया और जब पहली बार यह विचार पनपा तो यूनाइटेड स्टेटस और भारत दोनों ने इसके बारे में कुछ संकोच दिखाया था। जब नई सरकार सत्ता में आई, जो पहले विपक्ष में थी, तो वह अपने स्टैंड पर कुछ आगे बढ़ी (चार पक्षीय वार्ता पर)
श्री बरुआ: वह क्या था?
उच्चायुक्त: ऐसा ज़रूरी नहीं था।
श्री बरुआ: किसी भी सूरत में, मैं सोचता हूं कि यह टोपिक अब खत्म हो चुका है। मैंने अपने प्रधानमंत्री से बात की थी, उनके चीन जाने से पहले।
भारत और चीन के बारे में, क्या अब आपकी नीति में चीन की तरफ झुकाव रहेगा?
उच्चायुक्त: देखिए, मैं उससे असहमत हूंगा। मैंने भारत में यहां कुछ स्रोतों से इस प्रकार के आरोप देखे हैं।
श्री बरुआ: ऐसा क्यों?
उच्चायुक्त: मैं सोचता हूँ, आंशिक रूप से, क्योंकि श्री रड्ड चीन के बारे में विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं, वे चीन में रहे हैं.... चीन में दूतावास में काम कर चुके हैं, मैंडेरिन जानते हैं और चीन का उन्होंने बहुत अध्ययन किया है। वे अपने काल के प्रारंभ में चीन जा चुके हैं। परन्तु चीन, बहरहाल ऑस्ट्रेलिया का बेहद महत्वपूर्ण कारोबारी भागीदार है... उन्होंने चीन में महत्वपूर्ण दिलचस्पी लेने का न्यायोचित ठहराया है।
परंतु मैं तर्क देना चाहूँगा, कि अपने सिद्धांतों या अन्य देशों के हितों के बदले नहीं। मैं ध्यान दिलाना चाहूँगा कि, तिब्बत के मुद्दे पर, उदाहरण के लिए, वह बहुत स्पष्ट रहे हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि तिब्बत में मानवाधिकारों का शोषण हो रहा है। यह बिलकुल स्पष्ट है। जो कुछ हो रहा है हमें उस पर स्पष्ट रहने की ज़रूरत है।
अब, रड्ड चीन के लिए महत्वपूर्ण सम्मान रखते हैं.. परंतु ऑस्ट्रेलियाई विदेश नीति के सिद्धांतों की कीमत पर नहीं। वे भारत में तथा इसके मामलों में भी पूरी दिलचस्पी लेते हैं तथा संबंधों को मज़बूत बनाना चाहते हैं। यह गौर करने योग्य है कि चुनाव के बाद प्रधानमंत्री के शुरूआती भाषण में जिन देशों के बारे में ऑस्ट्रेलिया की नई सरकार ने संकेत दिया, वे भारत और चीन थे क्योंकि ये एशियाई क्षेत्र की उभरती ताकतें हैं और मैं सोचता हूँ कि वे इस पर अटल रहेंगे।
समाप्त - E&OE